शेखर झा
छठ पूजा में अपने गांव राघोपुर(बिहार के मधुबनी जिले से 8 किलोमीटर दूर) जाना हुआ। पटना से होकर ही गांव जाते हैं।हालांकि हर बार की तरह इस बार भी गांव में ज्यादा दिन तो नहीं रहा, लेकिन 48 घंटेपटना में गुजारे। इस दौरान बहुत कुछ बदला-बदला सा लग रहा था। सरकार तोपिछली बार आने पर ही बदल गई थी। जो भी है, जैसा भी है, लेकिन पहले से पटना बदला-बदला सा लग रहा था।
मैं 21 अक्टूबर को साउथ बिहार एक्सप्रेस ट्रेन से राजेन्द्र नगर टर्मिनल पर उतरा। स्टेशन से बाहर निकलकर पटना स्टेशन जाने के सड़क क्रॉस कर ऑटो पकड़ा। जाम होने के कारण फ्लाई ओवर के नीचे करीब आधा घंटा ऑटो में बैठा रहा। इस दौरान बैठे-बैठे सब चीजों को निहार रहा था। लग रहा था कि बिहार में अब विकास हो रहा है। वैसे तो मैंने 30 नवम्बर 2016 को रायपुर को अलविदा कह दिया था। पटना में दैनिक जागरण संस्थान में नौकरी की शुरुआत की, लेकिन ज्यादा दिन नहीं रह पाया। यह भी कह सकते हैं कि मन नहीं लगा या फिर यह भी कह सकते हैं कि रायपुर वाले बड़े भाई, छोटे भाई, दोस्त सहित हमसे जुड़े लोगों के प्यार ने 9 महीने में ही वापस खींच लाया। यह इसलिए बता रहा हूं क्योंकि रायपुर आने के 4 महीने में बाद पहली बार घर जाना हो रहा था। पटना स्टेशन के सामने लम्बे समय से आर ब्लॉक से राजेन्द्र नगर जाने वाले फ्लाइ ओवर का भी काम लगभग पूरा-पूरा सा हो चुका है। पटना में रहने के दौरान काम के चलते स्टेशन जाना हुआ करता था। पर सही बताएं तो कभी भी खुश मन से नहीं जाता था, क्योंकि पटना स्टेशन या राजेन्द्र नगर टर्मिनल स्टेशन जाने के लिए भीड़ का सामना करना पड़ता था, वह भी दो-चार मिनट का नहीं, बल्कि आधे घंटे या उससे अधिक। वहां लगने वाले जाम में मैं भी अक्सर फंस जाता था। उस फ्लाइ ओवर के दोनों साइड से काम पूरा हो चुका है। स्टेशन के सामने वाले हिस्से का काम बचा है, जो दिन-रात तेजी से चल रहा है। सही कहूं तो फ्लाइ ओवर बनने से जाम की स्थिति पूरी तरह खत्म हो जाएगा। गांव की यादें, ट्रेन का सफर सहित अन्य यादगार लम्हों को ‘जनता दरबार’ पर आप से शेयर करुंगा। यह पहली कड़ी थी।
सौजन्य : जनता दरबार (jantadrbar.blogsport.in)
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